स्वरके उदयसे कार्योंके शुभ और अशुभका ज्ञान होता है। शरीरमें बहुत प्रकारकी नाडियोंका विस्तार है। नाभि-प्रदेशके नीचे जो कन्दस्थान | अर्थात् मूलाधार है, वहींसे उन नाडियोंका अङ्कुरण होकर सम्पूर्ण शरीरमें विस्तार होता है। बहत्तर हजार नाडियाँ नाभिके मध्यमें चक्राकार अवस्थित रहती हैं। उन नाडियोंमें वामा, दक्षिणा और मध्यमा नामक तीन श्रेष्ठ नाडियाँ हैं। (उन्हींको क्रमशः - इडा, पिंगला और सुषुम्णा कहा जाता है।) इनमें वामा सोमात्मिका, दक्षिणा सूर्यके समान तथा मध्यमा नाडी अग्निके समान फलदायिनी एवं कालरूपिणी है।
वामा नाडी अमृतरूपा है, वह जगत्को आप्यायित करती रहती है। दक्षिणा नाडी अपने। रौद्रगुणसे सदैव जगत्का शोषण करती रहती है। जब शरीरमें इन दोनोंका एक साथ प्रवाह होता है, उस समय समस्त कार्योंका विनाश करनेवाली मृत्यु आ पहुँचती है।
यात्रादिके लिये प्रस्थानकालमें वामा तथा प्रवेशके अवसरपर दक्षिणा नाडीप्रवाहको शुभ माना गया है। इडा अर्थात् वामाके श्वास-प्रवाह कालमें ऐसा सौम्य शुभकारी कार्य करना चाहिये, जो चन्द्रके समान जगत्के लिये भी शुभकारी हो तथा पिंगला अर्थात् दक्षिणा नाडीमें प्राणवायुके प्रवाहित होनेके समय सूर्यके समान तेजस्वी क्रूर कार्य करना चाहिये। यात्रामें, सभी कार्योंमें तथा विषको दूर करनेमें इडा नाडीका चलना अच्छा होता है। भोजन, मैथुन, युद्धारम्भमें, पिंगला नाडी सिद्धिदायक होती है। उच्चाटनादि अभिचार कर्मोंमें भी पिंगला नाडीका चलना उत्तम होता है।
मैथुन, संग्राम और भोजन करते समय राजाओंको पिंगला नाडीके श्वास-प्रवाहपर ध्यान रखना चाहिये। शुभ कार्योंके सम्पादनमें, यात्रामें, विषापनोदनमें तथा शान्ति एवं मुक्तिकी सिद्धिमें राजाओंको इडा नाडीकी गतिपर विचार करना चाहिये।
पिंगला एवं इडा नामक दोनों नाडियाँ चल रही हों तो क्रूर तथा सौम्य दोनों प्रकारका कार्य न करे। विद्वान्को यह समय विषके समान मानना चाहिये
सौम्यादि शुभ कार्योंमें, लाभादिके कर्मोंमें, विजयके लिये, जीवनके लिये तथा गमनागमनके लिये वामा नाडी सर्वत्र प्रशस्त मानी जाती है। घात-प्रतिघात, युद्धादिके क्रूर कार्य, भोजन और स्त्री- सहवासमें दक्षिणा नाडी प्रशस्त होती है। प्रवेश तथा क्षुद्र-कार्योंमें भी दक्षिणा नाडी श्रेष्ठ होती है।
शुभ-अशुभ, लाभ-हानि, जय-पराजय तथा जीवन और मृत्युके विषयमें प्रश्न करनेपर यदि प्रश्नकर्ताकी उस समय मध्यमा नाडी चल रही हो तो सिद्धि प्राप्त नहीं होती और यदि वामा तथा दक्षिणा नाडीके चलते समय प्रश्न हो तो निश्चित ही सिद्धि प्राप्त होती है, इसमें संशय नहीं है।
इसी प्रकार प्रश्नकर्ताके स्वरमें उदय तथा प्रश्नकर्ताकी अवस्थिति आदिपर विचार करनेसे भी कार्यकी सिद्धि-असिद्धिका निर्णय तथा शुभ- अशुभकालका ज्ञान किया जाता है। इसके लिये स्वरोदय-विज्ञानकी जानकारी अपेक्षित होती है * ।

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