🛑संसार में सुख दुख मिश्रित हैं🛑
बड़ी पुरानी कथा है : ईश्वर ने आदमी को बनाया। आदमी अकेला था। उसने प्रार्थना की कि मैं अकेला हूं मन नहीं लगता, तो ईश्वर ने स्त्री को बनाया। सब काम पूरा हो चुका था, ईश्वर सारी बनावट पूरी कर चुका था। सामान बचा नहीं था बनाने को तो उसने कई—कई जगह से सामान लिया। थोड़ी चांदनी चांद से ले ली, थोड़ी रोशनी सूरज से ले ली, थोड़े रंग मोर से ले लिए, थोड़ी तेजी सिंह से ले ली। ऐसा सामान चारों तरफ से, सब तरफ से इकट्ठा करके उसने स्त्री बनाई, क्योंकि सब काम पूरा हो चुका था। वह आदमी बना चुका था, तब आखिर में ये सज्जन आए कहने लगे, अकेले में मन नहीं लगता।
तो स्त्री बना दी उसने लेकिन स्त्री उपद्रव थी। क्योंकि कभी—कभीं वह गीत गाती तो कोयल जैसा! और कभी—कभी सिंहनी जैसी दहाड़ती भी। कभी—कभी चांद जैसी शीतल, और कभी—कभी सूरज जैसी उत्तप्त हो जाती। जब क्रोध में होती तो सूरज हो जाती, जब प्रेम में होती तो चांदनी हो जाती। तीन दिन में आदमी थक गया। उसने कहा, यह तो मुसीबत है। इससे तो अकेले बेहतर थे। तीन दिन स्त्री के साथ रह कर पता चला कि एकांत में बड़ा मजा है। एकांत का मजा बिना स्त्री के चलता ही नहीं पता। ब्रह्मचर्य का आनंद गृहस्थ हुए बिना पता चलता ही नहीं।
वह भागा, वापस गया। उसने ईश्वर से कहा, कि क्षमा करें, भूल हो गई। मैंने जो मागा, वह गलती हो गई। आप यह स्त्री वापस ले लें, मुझे नहीं चाहिए। यह तो बड़ा उपद्रव है। और यह तो मुझे पागल कर छोड़ेगी। और यह भरोसे योग्य नहीं है। कभी गाती और कभी क्रोधित हो जाती। और कब कैसे बदल जाती यह कुछ समझ में नहीं आता। यह अतर्क्य है। यह आप ही सम्हाले।
ईश्वर ने कहा, जैसी मर्जी।
तीन दिन छोड़ गया ईश्वर के पास स्त्री को। घर जाकर लेटा, बिस्तर पर पड़ा याद आने लगी। उसके मधुर गीत। उसका गले में हाथ डाल कर झूलना! उसकी सुंदर आंखें! तीन दिन बाद भागा पहुंचा। उसने कहा कि क्षमा करें, वह स्त्री मुझे वापस दे दें। सुंदर थी 1 गीत गाती थी। घर में थोड़ी गुनगुन थी। सब उदास हो गया। अब जंगल से लौटता हूं हारा— थका, लकड़ी काट कर, जानवर मार कर, कोई स्वागत करने को नहीं। घर थी तो चाय—कॉफी तैयार रखती थी। द्वार पर खड़ी मिलती थी। प्रतीक्षा करती थी। नहीं, बड़ी उदासी लगती है। क्षमा करें, भूल हो गई। मुझे वापस दे दें। ईश्वर ने कहा, जैसी तुम्हारी मर्जी।
तीन दिन में फिर हालत खराब हो गई। तीन दिन बाद वह फिर आ गया। ईश्वर ने कहा, अब बकवास बंद। तुम न स्त्री के बिना रह सकते हो, न स्त्री के साथ रह सकते हो। तो अब जैसे भी हो, गुजारो।
तब से आदमी जैसे भी हो वैसे गुजार रहा है!
तुम अगर बाजार में हो तो आश्रम बड़ा प्रीतिकर लगेगा। अगर तुम आश्रम में हो तो बाजार की याद आने लगेगी। अगर तुम बंबई में हो तो कश्मीर, अगर कश्मीर में हो तो बंबई।
संसार में सुख और दुख मिश्रित हैं। वहां चांद भी है और सूरज भी। और मोर भी नाचते हैं और सिंह भी दहाड़ते हैं। तो जब तुम मौजूद होते हो संसार में तो सब उसका दुख दिखाई पड़ता है; वह उभर कर आ जाता है। जब तुम दूर हट जाते हो तो सब याद आती हैं सुख की बातें।
इसलिए मैं कहता हूं मेरे संन्यासी को, भागना मत। वहीं रहना। पकना। भागना मत, पकना। पक कर गिरना। थक जाने देना। अपने से होने देना। तुम जल्दी मत करना।
जो सहज हो जाए वही सुंदर है।
साधो सहज समाधि भली।
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आज के लिए बस इतना ही ।
Shanti Dham
#shantidham

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