🌹 *हे कृष्ण* 🌹

प्रेम का सागर लिखूं ! 
या चेतना का चिंतन लिखूं !
प्रीति की गागर लिखूं ,
या आत्मा का मंथन लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित ,
चाहे जितना लिखूं....!

ज्ञानियों का गुंथन लिखूं ,
या गाय का ग्वाला लिखूं..!
कंस के लिए विष लिखूं ,
या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....!

पृथ्वी का मानव लिखूं ,
या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं !
चेतना चिंतक लिखूं,
या संतृप्त देवेश्वर लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....!

जेल में जन्मा लिखूं ,
या गोकुल का पलना लिखूं !
देवकी की गोदी लिखूं ,
या यशोदा का ललना लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....!

गोपियों का प्रिय लिखूं,
या राधा का प्रियतम लिखूं !
रुक्मणि का श्री लिखूं 
या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....!

देवकी का नंदन लिखूं,
या यशोदा का लाल लिखूं !
वासुदेव का तनय लिखूं,
या नंद का गोपाल लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....!

नदियों-सा बहता लिखूं,
या सागर-सा गहरा लिखूं !
झरनों-सा झरता लिखूं ,
या प्रकृति का चेहरा लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....!

आत्मतत्व चिंतन लिखूं,
या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं !
स्थिर चित्त योगी लिखूं,
या यताति सर्वात्मा लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं.....!
 
कृष्ण तुम पर क्या लिखूं,
कितना लिखूं...!
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....!

कृष्ण कन्हैया के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं..

*राधे राधे .* 🙏🙏